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बुद्ध की धम्म साधना और पातंजल योग

बुद्ध की धम्म साधना और पातंजल योग

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लेखक : 'धम्मप्रिय' भंवरसिंह सवाल

पृष्ठ : 128

 

— विषय सूची (CONTENTS) —

अध्याय-1

इतिहास के पन्नों में योग-सूत्र

ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमिः योग-सूत्र का रचना-काल; महाभारत कब और किसने लिखा?; महाभारत युद्ध की घटना; (अ) प्रथम समयानुमान (ब) दूसरा समयानुमान; कल्पना और इतिहास का प्रश्न; पतंजलि नाम के दो व्यक्ति होने का प्रश्न; योग-सूत्र की आधार सामग्री का स्रोत; भ्रान्ति का निवारण; एक बात और।

अध्याय-2

साधना-योग का मौलिक आधार

चार आर्य सत्य और पतंजलि योग (1) दुःख आर्य सत्य और हेय; दुःख की विभिन्न स्थितियां; (2) दुःख समुदय और हेय-हेतु, प्रतीत्य समुत्पाद, पंच-क्लेशों की धारणा (3) दुःख-निरोध आर्य-सत्य और हान, दुःख-निरोध का क्रम, प्रहाण अथवा हान; चित्त वृत्तियों का निरोध; (4) दुःख-निरोध- गामिनी प्रतिपदा तथा हानोपाय।

अध्याय-3

आर्य अष्टांगिक मार्ग और योगांग

- धर्म-साधना के तीन सोपान (क) शील और यम, हिंसा से विमरण बनाम अहिंसा, नियम; (ख) समाधि; सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, आनापान स्मृति तथा प्राणायाम, आनापान स्मृति और प्राणायाम में अन्तर; प्रत्याहर, धारणा व ध्यान; सम्यक समाधि बनाम सम्प्रज्ञात समाधिः आठ ध्यान समापत्तियां; सम्यक समाधि की चार अवस्थाएंः समाधि के उत्तरोत्तर प्रकार (1) क्षणिक समाधि, (2) उपचार समाधि, (3) अर्पणा समाधि; सम्प्रज्ञात समाधि की योग-भूमियां; (1) वितर्कानुगत सवितर्कः निर्वितर्क सम्प्रज्ञान समाधि, (2) विचारानुगत सविचार-निर्विचार सम्प्रज्ञात समाधि, (3) आनन्दानुगत समाधि, (4) अस्मितानुगत समाधि या धर्ममेघीय समाधि; यह असम्प्रज्ञात समाधि क्या है? (ग) प्रज्ञाः समाधि से आगे; अभिज्ञान (अ) शमथ अभिज्ञान; (ब) धर्म अभिज्ञान; 1, श्रुतमयी प्रज्ञा; 2. चिन्तनमयी प्रज्ञा, 3. भावनामयी (प्रत्यक्ष अनुभूति-जन्य) प्रज्ञा (क) अनुबोध परिज्ञानः (ⅰ) अनित्य बोध (ii) दुःख बोध, (iii) अनात्म बोध; (ख) प्रतिवेध परिज्ञान। पातंजल योग में प्रज्ञा तथा विवेकख्याति ।

अध्याय-4

काया, चित्त कर्म और पुनर्जन्म

काया का विश्लेषणः भौतिक काया क्या है?; कायानुश्यनाः 1. आनापान स्मृति पर्व, 2. ईर्ष्यापथ, 3. सम्प्रज्ञान, 4. प्रतिकूल मनसिकार, 5. धातु मनसिकार, 6. नवसिधिक; पतंजलि और भौतिक विकास की प्रक्रिया। चित्त का विश्लेषणः क्या है यह चित्त ? (क) कामलोकीय या कामावचर चित्त, (ख) रूपलोकीय या रूपावचर चित्त; (ग) अरूपलोकीय या अरूपावचर चित्त; (घ) लोकोत्तर चित्त; चित्तानुपश्यना; चित्त-वृत्तियां या चैतसिक धर्म; पतंजलि और चित्त वृत्तियां, (1) प्रमाणः (ⅰ) शब्द या आगम प्रमाण (ii) अनुमान प्रमाण; (iii) प्रत्यक्ष प्रमाण; निर्भान्त निदर्शन; प्रत्यक्ष अनुभूति और दृष्टि का विभ्रम; एक बात और (2) विपर्यय; (3) विकल्प; (4) निद्रा; (5) स्मृति; पांच क्लेश; विशेष बात; बुद्ध-वाणी में चैतसिक धर्म; निष्कर्ष; एक टिप्पणी। कर्म का सिद्धान्तः बौद्ध धर्म-साधना में कर्म तथा उसके प्रकार; पतंजलि योग में कर्म (1) शुक्ल कर्म, (2) कृष्ण कर्म, (3) शुक्ल-कृष्ण कर्म, (4) अशुक्ल-अकृष्ण कर्म; मात्र होना, निष्काम कर्म की अभिकल्पना; एक सम्भावना और। पुनर्जन्म की वैज्ञानिक प्रक्रियाः एक जन्म से दूसरे जन्म में अन्तरण की योग-व्याख्याः एक ही अन्तर।

अध्याय-5

अन्तिम लक्ष्य और मार्ग में बाधक-साधक तत्त्व

(अ) अन्तिम लक्ष्य की बात; क्या है यह निर्वाणिक अवस्था?; निर्वाण की चार अवस्थाएं (1) स्त्रोतापन्न अवस्था, (2) सकदागामी अवस्था (3) अनागामी अवस्था, (4) अरहन्तावस्था; और यह कैवल्य क्या है?; चार ब्रह्मविहार। मार्ग में उत्पन्न बाधाएं; बुद्ध वाणी में उल्लेख (1) कामच्छेन्द, (2) व्यापाद, (3) स्त्यान-मृद्ध, (4) औद्धत-कौकृत्य, (5) विचिकित्सा; मार की अवधारणा और उसकी सेना; पातंजल योग में बाधाओं का उल्लेख; अन्य सहयोगी अन्तराय। पतंजलि के योग-सूत्र में सहायक तत्त्व; धर्म साधना में सहायक तत्त्वः (1) श्रद्धा (2) वीर्य (3) स्मृति (4) समाधि (5) प्रज्ञा; एक उपाय और।

अध्याय-6

सिद्धियां और उनकी सार्थकता

अर्थ एवं प्रयोजन; बुद्ध-वाणी में उपलब्ध सिद्धियां (1) पूर्व जन्मों की स्मृति (2) पर-चित्त-ज्ञान (3) आकाश गमन (4) एक लोक से दूसरे लोक में गमन (5) सत्य क्रिया (6) मन के समान शरीर की गति (7) रूप-काया एवं धर्म-तरंगों का प्रस्फुटन (8) मृत्यु-बोध, (1) सर्वज्ञता एवं सर्वलोकों का ज्ञान, (10) समस्त चक्रवालों के प्राणियों तक मंगल-मैत्री का प्रभव (11) देवताओं को भी प्रभावित करने की शक्तिः पातंजल योग में सिद्धियां संमय् से प्राप्त सिद्धियां, सार की बात।

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